छोरो म्हारो गुलगुलों सो , छोरी थांरी भैस सी
" हाँ " कर्याँ पैली, छोरो -छोरी देखसी !
दलाल बोल्यो -रेबा द्यो
बात सागी कह बा द्यो!
दायजा में दो कोड़ रुपिया नकदी टेक सी!
रतन जैन
छोरो म्हारो गुलगुलों सो , छोरी थांरी भैस सी
" हाँ " कर्याँ पैली, छोरो -छोरी देखसी !
दलाल बोल्यो -रेबा द्यो
बात सागी कह बा द्यो!
दायजा में दो कोड़ रुपिया नकदी टेक सी!
रतन जैन
आली लकड़ी चुल्हो-चाकी, चिम्टो बेलण अर धुवों
आंख्यां अं जण, खन-खन कंगण, ओ गोरो तन अ र धुवों!
बापू-बडिया, मायड़-बीरा ,ओल्यूँ सुलगी पीवर री
पण पिव रै घर प्यारो लागे , धुंध्लो दर्पण अ र धुवों!
दर्वजै पर सज्या मांड णा, छत आन्गनिये रांगोळी
ओरे में मकड़ी रा जाला , चूसा-सीलन जाल र धुवों!
हंसली, नथली, बोर, झुमकों टेवतीयो अलबेलों पण
लज्व ण थारा सांचा गहणा , ओल्मों-अनबन ar धुवों!
रतन जैन
डबली बाबू रै गाँव में एक महात्माजी आया। डबली बाबू बाँरी घणी सेवा चाकरी करी। महात्माजी डबली बाबू री सेवा सूं खुश हूँ नै बोल्या-मैं थांसूं भोत खुश हूँ । कीं मान्गल्यो।
डबली बाबू हाथ जोड़ नै अरज करी-महाराज!आपरी दया सूं म्हारे कने सो कीं है। बस, आपरो आर्शीवाद चाहिजै।
महात्मा डबली बाबू री नरमाई सूं भोत राजी हुया अ र बीं नै तीन गोळयाँ दी।
" आँ गोळयाँ ने जापते सूं राखिजे। एक गोळी खातां ई थारी उमर २० बरस कम हूँ ज्यासी।"
डबली बाबू घणा राजी हुया। महात्मा रे धोक दे र घरे आग्या, अ र गोळयाँ ने लुको र रखदी।
करीब एक साल बाद डबली बाबू परदेस सूं पाछ्या आया तो गेली में एक लुगाई हेलो पाडयो। लुगाई जवान सी लागे ही। बीं री गोदयाँ में टाबर हो। बा बोली- " बेटा, ओल्खी कोनी के? मैं थारी माँ हूँ ।"
" पण म्हारी माँ तो बूढी है। तूं कुण है?"
" अबै तनै के बताऊँ , बेटा! थारी अलमारी में तीन गोळयाँ ही। चूरण री जाण एक गोळती मैं खाली। गोळती खातां ई मैं तो जवान दिख बा लाग गी!"
"पण, माँ थारी गोदयाँ में ओ टाबर कुण है?"
"बेटा , ओ थारो बाप है ! ऐ दो गोळयाँ खा ली ही !"
गुलराज जोशी
जवानी रै दिनां में डबली बाबू एकर साक्षात्कार देबा ने गया। एक भायलो भी सागे हो। पैली भायला री बारी आयी। डबली बाबू बीने पुछ्यो -तनै के -के सवाल पूछ्या ?
भायलो जवाब दियो-तीन सवाल पूछ्या। पैलो सवाल -भारत के प्रथम प्रधानमंत्री कौन थे? मैं जबाब दियो- जवाहरलाल नेहरू । दूसरो सवाल - भारत आजाद कब हुआ ? मैं जवाब दियो- प्रयास तो १८५७ से शुरू हो गए थे पर सफलता १९४७ में मिली। तीसरो सवाल-क्या कैंसर लाइलाज है? मैं जवाब दियो-डॉक्टरों का अनुमान तो यही है। वैसे शोध जारी है।
डबली बाबू तीनूं प्रश्नां रा उत्तर रट लिया। थोड़ी देर में बांरी बारी आयी। अफसर पूछ्यो-आपका का नाम?
डबली बाबू फट उत्तर दियो-जवाहरलाल नेहरू। अफसर अ"र कने बेठ्या लोग चकराया।
"आपका जन्म कब हुआ?"
प्रयास तो सन १८५७ से चल रहा था । सफलता १९४७ में मिली।- डबली बाबू रो उत्तर सुण सै जणा हंस पड्या।
अफसर बनावटी गुस्से में बोल्यो -"पागल हो गए हो क्या?"
" डॉक्टरों का अनुमान तो यही है। वैसे शोध जारी है।
गुलराज जोशी
डबलीजी बणा ई गाडी ,गाय बेच ल्याया पाडी
पाडी जोड़ खेत चाल्या , लेरने बिठाई लाडी !
गेडिये री मार्यां जा
कियां कोणी चाले आ।
डबलाणी बोली-चाले कियां ,मिन्नी देगी कार आडी!
रतन जैन
प्रेम रो पर्वत ,रूप रो झरणों
चोखो लागै , अठै ठहरणों!
कातिल आँख्यां ,बोझिल सांसां
ख़ुद सूं ई घबराणो डरणो !
बद ळी रै झी णे आंचल में
चाँदड़लै रो लुकणो , छिपणो!
झुरमुट में म्हे, आँख्यां में थे
बात- बात पर रूठणो , मनणो!
एक नशो है आ प्रीतड़ली
जो नी सिख्यो कद उतर
अतुल जैन