Sunday, November 15, 2009

मैं हूँ डॉक्टर जठै
घरआली है नर्स बठै,
हाय, के-के नी झेलणो पड़े
घरआली ने ही 'सिस्टर'
केवणो पड़े!
रतन शर्मा
(मारवाडी डाइजेस्ट स्यूं साभार )

Saturday, November 14, 2009

गीत्ड्लो

एक दिवो घूंघट में दमके
दूजो सोवै हाथां ,
मुलक्याँ दीपशिखा सी चिमके
उजलै धोलै दांतां !
हिवड़े में पिवजी रो दिवो
प्रेम पगी मन जोत ,
लैब डब नेह उभारां लेतो
दियो प्रकाशै भोत !
आ लिछमी ममता री मूरत, बा अभिमान जताती
वह भई, शेखावाटी !
मुरली बासोतिया
(मारवाड़ी डाइजेस्ट से साभार )

Friday, November 13, 2009

लिछमिपत रै घर में घाटो

घणी गरीबी गीलो ऑटो!

क्षेत्रवाद रो भूत निडर हो

राष्ट्रवाद रै मारै चान्टो!

शीशा रै घर में रेवे अ'र

दुजां रै घर फेंकै भाटो!

मेला जठै लागता रेवै

बठै पसर गयो सन्नाटो!

थांरी-म्हारी करणी छोड़ो

और देस नै मतना बांटो!

मनोहरलाल गोयल

(मारवाडी डाइजेस्ट से साभार )

Thursday, November 12, 2009

माँ

माँ तूं बूढी हो 'र भी
कितो काम कर लै,
इतो सारो इमरत , लाड-प्यार
हिवडे में भरले!
ख़ुद खाणे सूं पैली
टाबरियां ने खिला ' र
ख़ुद आधो पेट भर'र
चुपचाप सो'जा ।
रोज बापू सूं मार , क्लेश रो विष
एकली पी' जा!
माँ, इसी के शग्ती है थारे में
म्हाने ई बतादै?
माँ , म्हारी भोळी माँ बोली -
लाड-कोड़ , प्रेम!
रतन जैन

Monday, November 9, 2009

कुमत री यारी

तुम्बै री तरकारी

खारी ही खारी

बाळ से आळ , बड़ा रो विरोध

चंचल नार सूं ना हंसिये

गुलाम सूं दोस्ती , ओछे री यारी

ओघट घाट पे ना धन्सिये ।

गुलराज जोशी