Monday, November 9, 2009

कुमत री यारी

तुम्बै री तरकारी

खारी ही खारी

बाळ से आळ , बड़ा रो विरोध

चंचल नार सूं ना हंसिये

गुलाम सूं दोस्ती , ओछे री यारी

ओघट घाट पे ना धन्सिये ।

गुलराज जोशी

No comments:

Post a Comment