कुमत री यारी
तुम्बै री तरकारी
खारी ही खारी
बाळ से आळ , बड़ा रो विरोध
चंचल नार सूं ना हंसिये
गुलाम सूं दोस्ती , ओछे री यारी
ओघट घाट पे ना धन्सिये ।
गुलराज जोशी
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