माँ तूं बूढी हो 'र भी
कितो काम कर लै,
इतो सारो इमरत , लाड-प्यार
हिवडे में भरले!
ख़ुद खाणे सूं पैली
टाबरियां ने खिला ' र
ख़ुद आधो पेट भर'र
चुपचाप सो'जा ।
रोज बापू सूं मार , क्लेश रो विष
एकली पी' जा!
माँ, इसी के शग्ती है थारे में
म्हाने ई बतादै?
माँ , म्हारी भोळी माँ बोली -
लाड-कोड़ , प्रेम!
रतन जैन
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