एक दिवो घूंघट में दमके
दूजो सोवै हाथां ,
मुलक्याँ दीपशिखा सी चिमके
उजलै धोलै दांतां !
हिवड़े में पिवजी रो दिवो
प्रेम पगी मन जोत ,
लैब डब नेह उभारां लेतो
दियो प्रकाशै भोत !
आ लिछमी ममता री मूरत, बा अभिमान जताती
वह भई, शेखावाटी !
मुरली बासोतिया
(मारवाड़ी डाइजेस्ट से साभार )
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