प्रेम रो पर्वत ,रूप रो झरणों
चोखो लागै , अठै ठहरणों!
कातिल आँख्यां ,बोझिल सांसां
ख़ुद सूं ई घबराणो डरणो !
बद ळी रै झी णे आंचल में
चाँदड़लै रो लुकणो , छिपणो!
झुरमुट में म्हे, आँख्यां में थे
बात- बात पर रूठणो , मनणो!
एक नशो है आ प्रीतड़ली
जो नी सिख्यो कद उतर
अतुल जैन
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