Saturday, July 18, 2009

गीत

प्रेम रो पर्वत ,रूप रो झरणों

चोखो लागै , अठै ठहरणों!

कातिल आँख्यां ,बोझिल सांसां

ख़ुद सूं ई घबराणो डरणो !

बद ळी रै झी णे आंचल में

चाँदड़लै रो लुकणो , छिपणो!

झुरमुट में म्हे, आँख्यां में थे

बात- बात पर रूठणो , मनणो!

एक नशो है आ प्रीतड़ली

जो नी सिख्यो कद उतर

अतुल जैन

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