Saturday, July 25, 2009

साँचा गहणा

आली लकड़ी चुल्हो-चाकी, चिम्टो बेलण अर धुवों

आंख्यां अं जण, खन-खन कंगण, ओ गोरो तन अ र धुवों!

बापू-बडिया, मायड़-बीरा ,ओल्यूँ सुलगी पीवर री

पण पिव रै घर प्यारो लागे , धुंध्लो दर्पण अ र धुवों!

दर्वजै पर सज्या मांड णा, छत आन्गनिये रांगोळी

ओरे में मकड़ी रा जाला , चूसा-सीलन जाल र धुवों!

हंसली, नथली, बोर, झुमकों टेवतीयो अलबेलों पण

लज्व ण थारा सांचा गहणा , ओल्मों-अनबन ar धुवों!

रतन जैन

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