डबली बाबू रै गाँव में एक महात्माजी आया। डबली बाबू बाँरी घणी सेवा चाकरी करी। महात्माजी डबली बाबू री सेवा सूं खुश हूँ नै बोल्या-मैं थांसूं भोत खुश हूँ । कीं मान्गल्यो।
डबली बाबू हाथ जोड़ नै अरज करी-महाराज!आपरी दया सूं म्हारे कने सो कीं है। बस, आपरो आर्शीवाद चाहिजै।
महात्मा डबली बाबू री नरमाई सूं भोत राजी हुया अ र बीं नै तीन गोळयाँ दी।
" आँ गोळयाँ ने जापते सूं राखिजे। एक गोळी खातां ई थारी उमर २० बरस कम हूँ ज्यासी।"
डबली बाबू घणा राजी हुया। महात्मा रे धोक दे र घरे आग्या, अ र गोळयाँ ने लुको र रखदी।
करीब एक साल बाद डबली बाबू परदेस सूं पाछ्या आया तो गेली में एक लुगाई हेलो पाडयो। लुगाई जवान सी लागे ही। बीं री गोदयाँ में टाबर हो। बा बोली- " बेटा, ओल्खी कोनी के? मैं थारी माँ हूँ ।"
" पण म्हारी माँ तो बूढी है। तूं कुण है?"
" अबै तनै के बताऊँ , बेटा! थारी अलमारी में तीन गोळयाँ ही। चूरण री जाण एक गोळती मैं खाली। गोळती खातां ई मैं तो जवान दिख बा लाग गी!"
"पण, माँ थारी गोदयाँ में ओ टाबर कुण है?"
"बेटा , ओ थारो बाप है ! ऐ दो गोळयाँ खा ली ही !"
गुलराज जोशी
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