अमरा मरता म्हे देख्या , भाग्या देख्या सूर
आगे सूं पाछा भला , नाम भलो लह्टूर ।
बांका रहिज्यो बालमा, बांका आदर जोग
बाँकी वन री लाकडी, काट सकै नीं कोय।
तलवारां ऊंची टंगी, लाग्यो कटारयाँ काट
कवचां लागी लेदरी , गई दीम्कां चाट।
कागा तन मत खाइयों, चुन-चुन खाइयो मांस
दो नेणां मत खाइयों पिया मिलन जी आस!
संतोष दाधीच
haji thari kavita to bahut hi badiya hai aur likhta rahijyo
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