Saturday, August 1, 2009

पोटली

अमरा मरता म्हे देख्या , भाग्या देख्या सूर

आगे सूं पाछा भला , नाम भलो लह्टूर ।

बांका रहिज्यो बालमा, बांका आदर जोग

बाँकी वन री लाकडी, काट सकै नीं कोय।

तलवारां ऊंची टंगी, लाग्यो कटारयाँ काट

कवचां लागी लेदरी , गई दीम्कां चाट।

कागा तन मत खाइयों, चुन-चुन खाइयो मांस

दो नेणां मत खाइयों पिया मिलन जी आस!

संतोष दाधीच

1 comment:

  1. haji thari kavita to bahut hi badiya hai aur likhta rahijyo

    ReplyDelete