Monday, August 3, 2009

एक फूल अ र सूळ हजार

ऊंचे लोगाँ सूं व्योहार

मतना सुपनों देखि यार।

ओ गेलो है काँटा भरियो

एक फूल अ र सूळ हज़ार।

गर्दन , आंख्यां, कमर झुकगी

जो भी आया आँ दरबार।

अल्दा बाट लेणे-देणे रा

किंयाँ करेलो तूं ब्योपार।

अब तो जा तूं काल आईजे

सूटकेस भर ल्या उपहार !

माया जालान

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